छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालय (Universities in Chhattisgarh)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री एवं मुख्यमंत्रियों को शपथ दिलाने वाले राज्यपाल
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री एवं मुख्यमंत्रियों को शपथ दिलाने वाले राज्यपाल
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद जोगी थे। जिन्हें 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ के पहले राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी।
1st Governor of Chhattisgarh Dinesh Nandan Sahay / 1st Chief Minister of Chhattisgarh Ajit Jogi |
छत्तीसगढ़ के दूसरे मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह 07 दिसम्बर 2003 को छत्तीसगढ़ के दूसरे राज्यपाल कृष्ण मोहन सेठ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी।
2nd Governor of Chhattisgarh Krishna Mohan Seth / 2nd Chief Minister of Chhattisgarh Raman Singh |
मुख्यमंत्री के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के लिए डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़ के तीसरे राज्यपाल ईएसएन नरसिंहन ने 12 दिसम्बर 2008 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी।
3rd Governor of Chhattisgarh E. S. L. Narasimhan / 2nd Chief Minister of Chhattisgarh Raman Singh |
मुख्यमंत्री के तौर पर अपने तीसरे कार्यकाल के लिए डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़ के चौथे राज्यपाल शेखर दत्त ने 12 दिसम्बर 2013 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी।
4th Governor of Chhattisgarh Shekhar Dutt / 2nd Chief Minister of Chhattisgarh Raman Singh |
छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कार्यवाहक राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 17 दिसम्बर 2018 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी।
Governor of Chhattisgarh (Additional charge) Anandiben Patel / 3rd Chief Minister of Chhattisgarh Bhupesh Baghel |
डोंगरगढ़ : माँ बम्लेश्वरी का इतिहास | Maa Bamleshwari Mandir, Dongargarh
डोंगरगढ़ : माँ बम्लेश्वरी का इतिहास
District MMAC : जिला मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी
जिला मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी
जिले का संक्षिप्त परिचय:-
छत्तीसगढ़ के 29वें जिले के रूप में जिला मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी 2 सितम्बर 2022 को तात्कालिक राजनांदगांव जिले से अलग हो कर अस्तित्व में आया। जिले का क्षेत्रफल 2145.29 वर्ग किलो मीटर है। यह छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित है। जिला मुख्यालय मोहला है, मोहला राज्य की राजधानी रायपुर से लगभग 150 किमी दूर है। जिले का निकटतम हवाई अड्डा स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा रायपुर में है, जो लगभग 170 किमी दूर है। प्राचीन समय में यह क्षेत्र चंदो (चंद्रपुर) राज के अधीन था। ब्रिटिश शासन काल में, कोराचा, पानाबरस और आमागढ़ नाम के 3 रियासतें थी।
जिला मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी धार्मिक पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी समृद्ध है। जिले में मोंगरा बैराज, कान्हे मंदिर, दंतेश्वरी मंदिर, राजावाड़ा, मनसा देवी मंदिर बांधा बाजार, राजावाड़ा, राजा तालाब, थर्ड नाला धोबेदण्ड, स्वामी आत्मानंद स्कूल भवन, शिवलोक मानपुर, खडग़ांव माइंस, मुड़ा पहाड़ जैसे दर्शनीय स्थल है। यह क्षेत्र अपनी कलात्मक आदिवासी संस्कृति, हरी-भरी पहाड़ियों, प्रमुख और लघु वन उपज, बाजरा, लौह अयस्क और चूना पत्थर के भंडार और जल निकायों के लिए जाना जाता है।
नवीन जिला मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी का क्षेत्रफल 2145.29 वर्ग किलो मीटर है। नवीन जिला आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। जिसमें आदिवासी जनसमूह का प्रतिशत अधिक है। जिले में कुल 5 तहसील मोहला, मानपुर, अंबागढ़ चौकी, खड़गांव व औंधी है। अंचल को विकसित करने व आम जनता की सुविधा के लिए दूरस्थ क्षेत्र औंधी और खड़गांव को नवीन तहसील बनाने के लिए घोषणा राजपत्र में प्रकाशित हो चुकी है, जिससे जिले में कुल 5 तहसील हो गए है।
2011 की जनगणना अनुसार इस जिले की कुल जनसंख्या 2 लाख 83 हजार 947 है। नवीन जिला वन संपदा एवं वनोपज से समृद्ध क्षेद्ध है। जिले के कुछ भाग में खनिज संपदा भी है। जिले में 3 जनपद क्षेत्र तथा एक नगर पंचायत है। जिले का मुख्य आर्थिक कार्य कृषि तथा वनोपज संग्रहण करना है। 185 ग्राम पंचायत, 13 राजस्व मंडल तथा 89 पटवारी हल्का जिले की सीमाओं के अंदर है। नवीन जिला मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी सीमाएं राजनांदगांव, कांकेर तथा बालोद जिले से लगी हुई हैं जिले के दक्षिण-पश्चिम भाग महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं से लगा है।
प्राचीन इतिहास:-
प्राचीन समय में मोहला-मानपुर क्षेत्र चान्दो राज वर्तमान में चन्द्रपुर के गोड़ राजा की सीमाओं के अंदर आता था। अंग्रेज हुकुमत के समय क्षेत्र में 03 रियासत कोराचा, पानाबरस तथा आमागढ़ था। पानाबरस रियासत के अंतर्गत सर्वाधिक 360 परगना (गांव) थे तथा 84 परगना का कोराचा रियासत सबसे पुराना था। क्षेत्र के इतिहास में 14 गढ़ 360 परगना कहावत प्रसिद्ध था। पूर्व इतिहास को देखें तो मोहला मानपुर क्षेत्र में कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। जिले का पानाबरस रियासत प्रदेश में अलग पहचान रखता है।
पानाबरस रियासत उनमें सबसे बड़ा था। आजादी के समय यह मध्य प्रांत का हिस्सा था। प्रारंभ में यह दुर्ग जिले के अंतर्गत था, लेकिन वर्ष 1973 में राजनांदगांव जिले के गठन के बाद, यह राजनांदगांव जिले का हिस्सा बन गया। 2 सितंबर 2022 को जिला मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी राजनांदगांव जिले से पृथक होने के बाद अस्तित्व में आया।
अर्थव्यवस्था -
जिला मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी मुख्य रूप से अपने लौह अयस्क भंडार और वन उपज के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र अपनी कृषि शक्ति के लिए भी जाना जाता है। कुछ दशकों के भीतर, इस क्षेत्र में कई छोटे मध्यम कृषि आधारित उद्योग स्थापित किए गए हैं, इन उद्योगों ने युवाओं के लिए रोजगार के बहुत सारे अवसर पैदा किए हैं और उनके जीवन को बदलने में मदद की है।
आर्थिक गतिविधियां -
जिले का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है। जिले में धान की खेती के साथ-साथ कोदो, कुटकी, मक्का, सोयाबीन, अरहर भी बोई जाती है। वनोपज इकट्ठा करना कृषि के साथ-साथ मुख्य आर्थिक कार्य है।
मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी में कृषि एवं व्यापार -
हालांकि इस क्षेत्र में कई उद्योगों का विकास देखा गया है लेकिन मुख्य कार्यबल कृषि में लगा हुआ है। शहरी आबादी मुख्य रूप से स्वरोजगार या सरकारी फर्म में कार्यरत है लेकिन ग्रामीण आबादी अभी भी डेयरी, मुर्गी पालन और मत्स्य पालन पर आजीविका के लिये निर्भर है। क्षेत्र की जनजातीय आबादी वन आधारित आजीविका गतिविधियों पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र के जंगल भी आदिवासी आबादी को जीवनयापन के लिए सहायता प्रदान करते हैं। आदिवासी लोग हर्बल उत्पादों में काम करने वाले छोटे उद्योगों के लिए इमली, आंवला, महुआ, आम, कस्टर्ड सेब और कुछ औषधीय पौधों के पत्ते एकत्र करते हैं।
प्रौद्योगिकी और सूचना के सुधार के साथ, क्षेत्र की कृषि में काफी सुधार हुआ है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से चावल, बाजरा, दाल आदि जैसे अनाज का उत्पादन करता है। इस क्षेत्र के किसान आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकताओं की उपलब्धता के कारण सर्दियों के दौरान खरीफ के मौसम में धान की खेती करते हैं। हालांकि, कठोर गर्मी और सूखे की स्थिति के कारण कभी-कभी चावल और धान का कम उत्पादन होता है।
मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी में औद्योगिक परिदृश्य - मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी का क्षेत्र लौह अयस्क के समृद्ध भंडार के लिए जाना जाता है जिसके कारण कई निष्कर्षण और खनन उद्योगों की स्थापना हुई है। इनके अलावा, जिला कृषि उत्पादों, लकड़ी और लघु वनोपज आधारित कई उद्योगों का केंद्र बन गया है।
मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले की सामान्य जानकारी
जिला का नाम : मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी
संभाग का नाम : दुर्ग
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल : 2145.29 वर्ग कि.मी.
कुल ग्राम : 499
कुल आबाद ग्राम : 494
कुल विद्युतीकृत ग्राम : 494
कुल पेयजल युक्त ग्राम : 494
ग्राम पंचायत : 185
जनपद पंचायत : 3
नगर पंचायत : 1
राजस्व निरीक्षक मंडल : 13
पटवारी हल्का : 89
थाना : 9
कुल जनसंख्या (2011 की स्थिति में) : 283947
कुल अ.ज.जा. जनसंख्या (2011 की स्थिति में) : 179662 (63%)
कुल अ.जा. जनसंख्या (2011 की स्थिति में) : 20722 (7%)
कुल साक्षर जनसंख्या (2011 की स्थिति में) : 186611 (65%)
पुरूष : 135092
महिला : 136407
साक्षरता दर
पुरूष : 74.40%
महिला : 57.27%
पर्यटन स्थल -
मोहला मानपुर चौकी जिले में पर्यटन के दृष्टिकोण से मोहला विकासखण्ड में माता छुरिया देवी का निवास है, वहीं अंबागढ़ चौकी विकासखंड में मां बम्लेश्वरी का निवास है, तथा मानपुर विकासखण्ड में शिवलोक है, जो कि यहां के धार्मिक मान्यताओं को दर्शाता है। साथ ही यहां के प्राकृतिक दृष्टिकोण से मानसून के मौसम में पहाड़ियों में छोटे-छोटे जलप्रपात स्वतः निर्मित हो जाते है।
धार्मिक, प्राकृतिक और धार्मिक स्थलों के बहुत सारे स्थान हैं। जिले में सांस्कृतिक महत्व, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
छुरिया माता मंदिर, मोहला -
छुरिया माता को रक्षक और छुरिया माता के रूप में माना जाता है; गाँव की देवी। यहां दो मंदिर हैं, पहला पहाड़ी की चोटी पर है और दूसरा मंदिर है। दूसरा पहाड़ी का एक निचला हिस्सा है। नवरात्रि काल में इसका विशेष आकर्षण होता है, दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं।
शिवलोक, मानपुर -
पहाड़ी की चोटी पर प्रसिद्ध शिव मंदिर है, यहां हर साल महाशिवरात्रि मेले का आयोजन किया जाता है।
अंबा देवी मंदिर, रामनगर चौकी-
क्षेत्र में लोग अंबा देवी के प्रति विशेष आभार व्यक्त करते हैं। नवरात्रि काल में, भक्त बहुत दूर स्थानों से यहां आते हैं।
मोंगरा बैराज, अंबागढ़ चौकी -
यह बैराज छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा नदी यानी शिवनाथ पर बनाया गया है। यह हरी-भरी खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है। आमतौर पर लोग पिकनिक के लिए इस जगह को पसंद करते हैं।
सस्पेंशन ब्रिज, कंडारी - इस पुल की अपनी अत्याधुनिक संरचना के लिए विशिष्ट पहचान है।
तीसरा नाला, धोबेडांड -
बरसात के मौसम में, नाले द्वारा बनाया गया एक सुंदर झरना, जो कई पर्यटकों को आकर्षित करता है।
संस्कृति और विरासत -
मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी जिले में प्रचलित संस्कृति छत्तीसगढ़ की है। छत्तीसगढ़ी स्थानीय भाषा है जिसे इस क्षेत्र के अधिकांश लोग बोलना पसंद करते हैं। छत्तीसगढ़ी संस्कृति अपने आप में बहुत समृद्ध और दिलचस्प है। बैगा (पारंपरिक चिकित्सक) बीमारियों और सांप के काटने आदि को ठीक करने के लिए अपने स्वयं के तरीकों (झड़ फुक कहा जाता है) का उपयोग करते हैं। हालांकि, इस क्षेत्र के लोग अपनी विनम्रता, दयालुता और समायोज्य प्रकृति के लिए जाने जाते हैं, वे ड्रेसिंग, मनोरंजन और तरीके में विविधता के शौकीन हैं। जीने की। इस संस्कृति में संगीत और नृत्य की अनूठी शैली है। राउत नाच, देवर नाच, पंथी और सोवा, पदकी और पंडवानी कुछ संगीत शैली और नृत्य नाटक हैं। पंडवानी इस क्षेत्र में महाभारत गायन का एक प्रसिद्ध संगीतमय तरीका है। इस विशेष संगीत शैली को प्रसिद्ध तीजन बाई और युवा रितु वर्मा ने सुर्खियों में लाया है। देश के इस हिस्से की महिलाएं और पुरुष रंग-बिरंगे कपड़े और तरह-तरह के आभूषण पहनते हैं।
महिलाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न सजावटी वस्तुएं हैं बांधा, सुता, फुली, बाली और खूंटी, आइंठी, पट्टा, चूड़ा, कमर पर करधनी, ऊपरी बांह के लिए पाहुंची और पैर की उंगलियों में पहनी जाने वाली बिछिया। पुरुष भी नृत्य जैसे अवसरों के लिए खुद को कौंधी और कड़ाह से सजाते हैं।
गौरी-गौरा, सुरती, हरेली, पोला और तीजा इस क्षेत्र के प्रमुख त्यौहार हैं। सावन के महीने में मनाई जाने वाली हरेली हरियाली की निशानी है। किसान इस अवसर पर कृषि उपकरण और गायों की पूजा करते हैं। वे खेतों में भेलवा (काजू के पेड़ जैसा दिखने वाला एक पेड़ और इस जिले के जंगलों और गांवों में पाया जाता है) की शाखाओं और पत्तियों को रखते हैं और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। लोग इस अवसर पर घरों के मुख्य द्वार पर नीम की छोटी-छोटी टहनियां भी लटकाते हैं ताकि मौसमी बीमारियों से बचा जा सके।
बच्चे हरेली के त्योहार से पोला तक गेड़ी (बांस पर चलना) खेलते हैं। वे गेड़ी पर विभिन्न करतब प्रदर्शित करते हैं और गेड़ी दौड़ में भाग लेते हैं। हरेली इस क्षेत्र में त्यौहारों की शुरुआत भी है। लोग बैलों की पूजा कर पोला मनाते हैं। बुल रेस भी त्यौहार का एक प्रमुख कार्यक्रम है। बच्चे मिट्टी से बने नंदिया-बैल (भगवान शिव के नंदी वाहन) की मूर्तियों के साथ खेलते हैं और मिट्टी के पहियों से सज्जित होते हैं। तीजा महिलाओं का त्यौहार है। सभी विवाहित महिलाएं इस अवसर पर अपने पति के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं। इस प्रार्थना को महिलाओं के माता-पिता के स्थान पर करने की प्रथा है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति के हर उत्सव और कला में एकता और सामाजिक समरसता की भावना भरी हुई है।
माँ छुरिया देवी का मंदिर -
माँ छुरिया देवी का मंदिर छत्तीसगढ का प्रसिद्ध मंे से एक है माँ छुरिया मंदिर जिले के अंबागढ चौकी के मार्ग के मोहला गांव में माता विराजित है पर सैकड़ों की संख्या मंे लोग माँ छुरिया देवी के दर्शन के लिए आते हैं और भक्त अपनी मनोकामना को लेकर माँ छुरिया देवी के दरबार में आते हैं। माँ छुरिया देवी को पहाड़ी वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। और मनोकामना पूरी हो जाने पर भक्त नारियल, अगरबत्ती आदि का चढ़ावा करते हैं। माँ छुरिया देवी के मंदिर के पास में भैरव बाबा, शंकर भगवान, काली माता और पंचमुखी हनुमान आदि देवी-देवता विराजित है।
थर्ड नाला धोबेदण्ड -
थर्ड नाला धोबेदंड मोहला से मानपुर जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है। थर्ड नाला धोबेदंड आस-पास स्थित पहाड़ों से बारिश के मौसम में आने वाले पानी के तेज बहाव से एक सुंदर झरने का रूप धारण करता है, जुलाई से लेकर सितम्बलर माह तक उक्त स्थान की छटा अदभूत प्राकृतिक रूप से सौंदर्यात्मक होती है। उक्त स्थान पर क्षेत्र के वासी अपना मनोरंजन करने के लिए परिवार सहित जाते हैं पिकनिक भी मनाते हैं। उक्त स्थान का आनंद व्यक्ति स्वयं आकर ले सकता है।
मोंगरा बैराज -
मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिला प्रमुख रूप से शिवनाथ नदी का बेसिन क्षेत्र है। अंबागढ़ चौकी में शिवनाथ नदी पर ही प्रसिद्ध मोंगरा बैराज का निर्माण किया गया है। जिसका उपयोग सिंचाई के लिए आसपास के क्षेत्रों में किया जाता है।
विकासखंड केन्द्र अंबागढ़ चौकी से लगभग 10 किलो मीटर दूर चिल्हाटी-कोरचाटोला मुख्य मार्ग से अंदर की ओर ग्राम मोंगरा में स्थित है। मोंगरा बैराज चारों ओर वनाच्छादित पहाड़ों से घिरा हुआ, अपनी मनोरम छटा, प्राकृतिक सौंदर्य, उद्यान के लिए प्रसिद्ध है। जहां दूर-दूर से पर्यटक विभिन्न अवसरों पर पिकनिक इत्यादि हेतु पहुंचते हैं। मोंगरा बैराज में 02 करोड़ 88 लाख रूपये की लागत से मछली का केज कल्चर किया जा रहा है, जिसमें रोहू, कतला, मृगल एवं तिलापिया प्रजाति के मछलियों का पालन किया जा रहा है। बैराज के पानी के माध्यम से आस-पास के सभी ग्रामों में सिंचाई एवं पेयजल की आपूर्ति की जाती है।
संसपेंशन ब्रिज-
जिला मुख्यालय मोहला से मानपुर जाने वाले मुख्यमार्ग से अंदर की दिशा में 10 किलो मीटर दूर स्थित प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनांतर्गत निर्मित ससपेंशन ब्रिज हमें हावड़ा एवं नागपुर में निर्मित ब्रिजों की याद दिलाता है। पूर्व में नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण वहां निर्मित पुलिया को क्षतिग्रस्त किया गया था। उक्त ब्रिज के निर्माण से क्षेत्र में आने-जाने वाले लोगों, सुरक्षा व्यवस्था में संलग्न पुलिस, आईटीबीपी कैंप के जवानों को भी सुविधा प्राप्त हुई है। ब्रिज के नीचे बहती नदी एवं चारों ओर हरे भरे वनों को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
शिवलोक मानपुर-
शिवलोक मानपुर जिला मुख्यालय मोहला से 25 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। चारांे तरफ वनाच्छादित क्षेत्र जहां कैलाश पर्वत में भगवान शिव शंकर तपस्या में रत हैं उसी प्रकार से भगवान शिव की मूर्ति स्थापित है। भगवान गणेश, हनुमान जी के भी छोटे-छोटे मंदिर स्थापित हैं। वहां चारों ओर शांति, सौंदर्य स्थापित है। महाशिवरात्रि एवं सावन के महीने में विशेष पूजा अर्चना की जाती है, मोहला-मानपुर-अं.चौकी जिले के निवासी विभिन्न अवसरों पर पूजा व भ्रमण हेतु अवश्य जाते हैं।
District RJN : जिला राजनांदगांव
जिला राजनांदगांव
जिले का संक्षिप्त परिचयः-
जिला राजनांदगांव 26 जनवरी 1973 को तात्कालिक दुर्ग जिले से अलग होकर अस्तित्व में आया। राजनांदगांव को संस्कारधानी के नाम से भी जाना जाता है। रियासत काल में राजनांदगांव एक राज्य के रूप में विकसित था एवं यहां पर सोमवंशी, कलचुरी एवं मराठाओं का शासन रहा। पूर्व में यह नंदग्राम के नाम से जाना जाता था। यहां के रियासतकालीन महल, हवेली राज मंदिर एवं यहां की संास्कृतिक धरोहर इस जगह की गौरवशाली समाज, संस्कृति परंपरा एवं राजाओं की गाथाएँ कह रही हैं। राजनांदगांव साहित्य के क्षेत्र में डॉ. गजानन माधव मुक्तिबोध, डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एवं श्री बल्देव प्रसाद मिश्र की कर्मभूमि रही है। 1 जुलाई 1998 को इस जिले के कुछ हिस्से को अलग कर एक नया जिला कबीरधाम की स्थापना हुई। राजनांदगांव जिले का विभाजन कर 2 सितम्बर 2022 को मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी जिला एवं 3 सितम्बर 2022 को खैरागढ़-छुईखदान-गण्डई जिला अस्तित्व में आया। जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य भाग में स्थित है। जिला मुख्यालय राजनांदगांव में दक्षिण-पूर्व रेलवे मार्ग स्थित है। राष्ट्रीय राज़ मार्ग 6 राजनांदगांव शहर से हो कर गुजरता है। नजदीकी हवाई अड्डा माना (रायपुर) यहां से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर है।
यह शहर राजनांदगांव जिला का वह हिस्सा है, जो भारत के ऐतिहासिक रूप से समृद्ध स्थानों में से एक है। गौरवशाली अतीत, सुंदर प्रकृति और संसाधनों की उपलब्धता ने राजनांदगांव को भारत के उभरते शहरों में से एक बनाया है। प्राचीन, समकालीन और शहर का इतिहास दिलचस्प और रोमांचक है। राजनांदगांव प्राचीन भारत के उन क्षेत्रों में से एक था जो पहले के दिनों में प्रकाश में नहीं आए थे। शहर द्वारा प्रसिद्ध राजवंशों जैसे सोमवंशी, कलचुरी बाद में मराठा पर शासन किया गया था। भारत के अन्य हिस्सों की तरह, राजनांदगांव भी एक संस्कृति केंद्रित शहर था। प्रारंभिक दिनों में शहर को नंदग्राम कहा जाता था। राजनांदगांव राज्य वास्तव में 1830 में अस्तित्व में आया था। बैरागी वैष्णव महंत ने राजधानी राजनंादगांव में अपनी राजधानी स्थानांतरित कर दी। शहर का नाम भगवान कृष्ण, नंद, नंदग्राम के वंशजों के नाम पर रखा गया था। हालांकि, नाम जल्द ही राजनांदगांव में बदल दिया गया था। राज्य ज्यादातर हिंदू राजाओं और राजवंशों के अधीन था। महल, सड़कों, राजनांदगांव के पुराने और ऐतिहासिक अवशेष पिछले युग की संस्कृति और महिमा दर्शाते हैं।
ब्रिटिशकालीन राजनांदगांवः-
राजनांदगांव अंग्रेजों के आने तक जीवंत एवं सक्रिय स्थान था। वर्ष 1865 में अंग्रेजों ने तत्कालीन शासक महंत घासी दास को राजनांदगांव के शासक के रूप में मान्यता दी। उन्हें राजनांदगांव के फ्यूडल चीफ का खिताब दिया गया और उन्हें बाद में समय पर गोद लेने का अधिकार सानद दिया गया। ब्रिटिश शासन के तहत उत्तराधिकार वंशानुगत द्वारा पारित किया गया था। बाद में नंदग्राम के सामंती प्रमुख को ब्रिटिश बहादुर द्वारा राजा बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया गया। उत्तराधिकार राजा महंत बलराम दास बहादुर, महंत राजेंद्र दास वैष्णव, महंत सर्वेश्वर दास वैष्णव, महंत दिग्विजय दास वैष्णव जैसे शासकों को पारित किया गया। राजनांदगांव के रियासत राज्य की राजधानी शहर था और शासकों का निवास भी था। हालांकि, समय बीतने के साथ राजनांदगांव के महंत शासक ब्रिटिश साम्राज्य की कठपुतली बन गये।
स्वतंत्रता के बाद राजनांदगांव का इतिहास :-
राजनांदगांव संयुक्त राष्ट्र गणराज्य नामक नए स्वतंत्र देश में एक रियासत बना रहा। वर्ष 1948 में रियासत राज्य और राजधानी शहर राजनांदगांव मध्य भारत के बाद में मध्य प्रदेश के दुर्ग जिले में विलय कर दिया गया था। नांदगांव, खैरागढ़, छुईखदान एवं कवर्धा रियासत को दुर्ग जिले में शामिल किया गया। वर्ष 1973 में, राजनांदगांव को दुर्ग जिले से पृथक कर नया राजनांदगांव जिला बनाया गया था। राजनांदगांव जिले का प्रशासनिक मुख्यालय बन गया। हालांकि, 1998 में बिलासपुर जिले के एक हिस्से के साथ राजनांदगांव जिले के हिस्से को मध्य प्रदेश में एक नया जिला बनाने के लिए विलय कर दिया गया था। जिले का नाम कबीरधाम जिला रखा गया था। वर्ष 2000 में नये छत्तीसगढ़ के स्वरूप में आने के बाद राजनंादगांव एक महत्वपूर्ण शहर बन गया।
राजनांदगांव जिले का मानचित्र |
राजनांदगांव जिले की सामान्य जानकारी
जिला का नाम : राजनांदगांव
संभाग का नाम : दुर्ग
अनुविभाग की संख्या एवं नाम : 03- राजनांदगांव, डोंगरगढ़, डोंगरगांव
तहसीलों की संख्या एवं नाम : 05- डोगरगढ, राजनांदगांव, छुरिया, डोगरगांव, लाल बहादुर नगर
उप तहसील की संख्या एवं नाम : 01- घुमका
विकासखण्ड एवं जनपद पंचायत का नाम : 04-डोगरगढ़, राजनांदगांव, छुरिया, डोगरगांव
लोकसभा क्षेत्र: 01-राजनांदगांव
विधानसभा क्षेत्र : 04- विधानसभा क्रमांक 74 डोंगरगढ़, विधानसभा क्रमांक 75 राजनांदगांव, विधानसभा क्रमांक 76 डोंगरगांव एवं विधानसभा क्रमांक 77 खुज्जी
कुल नगरीय निकाय : 4
नगर निगम की संख्या : 01-राजनांदगांव
नगर पालिका की संख्या एवं नाम : 01-डोंगरगढ़
नगर पंचायत की संख्या एवं नाम : 02-छुरिया, डोंगरगांव
कुल राजस्व निरीक्षक मंडल की संख्या : 35
कुल पटवारी हल्का : 211
क्षेत्रफल : 8022.55 वर्ग किमी
कुल जनसंख्या (2011 की जनगणना के अनुसार) : 884742
लिंगानुपात : 1009
जनसंध्या घनत्व : 273 प्रति वर्ग किलोमीटर
कुल ग्रामीण जनसंख्या : 665054
कुल नगरीय जनसंख्या : 219688
कुल ग्राम की संख्या : 694
आबादी ग्राम : 684
वीरान ग्राम : 5
डुबान ग्राम : 5
कुल ग्राम पंचायत की संख्या : 407
निकटतम अन्य जिला मुख्यालय का नाम एवं दूरी: दुर्ग 28 किमी
साक्षरता प्रतिशत : 78.46 प्रतिशत
जिले के प्रसिद्ध पर्यटन एवं दर्शनीय स्थल
मां बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ -
डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरूपा मां बम्लेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। मां बम्लेश्वरी के मंदिर में प्रति वर्ष नवरात्र के समय दो बार भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों की संख्या में दर्शनार्थी पहुंचते हैं। चारों ओर हरे भरे वनों पहाड़ियों, छोटे-बड़े तालाबों से घिरा हुआ है। डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर पर जाने के लिए सीढ़ियों के अलावा रोपवे की सुविधा भी है। डोंगरगढ़ रायपुर से 100 किलोमीटर एवं नागपुर से 190 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तथा मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग के अंतर्गत आता है। हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर डोंगरगढ़ रेलवे जंक्शन है।
प्रज्ञागिरी डोंगरगढ़ -
प्रज्ञागिरी पहाड़ी पर स्थित एक बौद्ध विहार है। जिसमें पूर्व दिशा की ओर एक विशाल बुद्ध की प्रतिमा है। पहाड़ पर चढ़ने के लिए 225 सीढ़िया हैं। प्रतिवर्ष प्रज्ञागिरी में 6 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित किया जाता है।
पाताल भैरवी मंदिर (बर्फानी धाम) राजनांदगांव -
पाताल भैरवी मंदिर माता के भक्तों के लिए व पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक विशेष श्रद्धा का केंद्र है। मां पाताल भैरवी माता दुर्गा का ही एक रूप है, जो इस मंदिर में स्थित है। मां पाताल भैरवी का यह मंदिर तीन स्तरों में बना हुआ है। जिसमें निचले स्तर पर माता पाताल भैरवी को देखा जा सकता है। दूसरे स्तर पर त्रिपुर सुंदरी का तीर्थ है। इसे नवदुर्गा भी कहा जाता है इसके पश्चात तीसरे और अंतिम स्तर शीर्ष पर भगवान शिव का विशाल शिवलिंग स्थापित किया गया हैै।
त्रिवेणी परिसर -
राजनांदगांव शहर हमारे देश के तीन महान साहित्यकारों गजानंद माधव मुक्तिबोध, डॉ. बल्देव प्रसाद मिश्र एवं पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कर्मभूमि रही है। उनका साहित्यिक अवदान अविस्मरणीय है और उनकी स्मृतियां हमारी अमूल्य धरोहर है। त्रिवेणी संग्रहालय में देश के तीन महान साहित्यकारों की कृतियां, पाण्डुलिपि एवं वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। उनकी रचनाएं यहां संकलित की गई है। उनके डायरी के अंश तथा उनके जीवन के प्रेरक प्रसंग की जानकारी यहां अंकित है। त्रिवेणी परिसर स्थित मुक्तिबोध स्मारक संग्रहालय एवं सृजन संवाद साहित्य के प्रति रूचि रखने वाले विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित है।
छत्तीसगढ़ के संभाग एवं जिलों का निर्माण (1855 - 2022)
छत्तीसगढ़ के 33 जिलों का गठन
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Cher_Chera : Chhattisgarh's festival, छेरछेरा तिहार
‘छेर छेरा ! माई कोठी के धान ला हेर हेरा !’
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छत्तीसगढ़ में बने 15 संसदीय सचिव
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मछलीपालन, जल संसाधन एवं आयाकट